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जब याद करता हूँ

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चिड्मुडे पन्ने में लिपटी एक कहानी सी , याद आती है , मुझे भी जिंदगी अपनी , शर्दियो की धुप में बैठा , आँखे मीचे मीचे  -                          ----जब याद करता हूँ तुम्हे !! जिंदगी की भीड़ में खुद को छुपा, मै भुला देना चाहता हूँ -हर याद मगर ,     कभी पीछे से - काँधे पर रख देती है हाथ , "तेरी आवाज "         तेरा नाम बुलाकर !!                              जल्दी जल्दी दौड़ कर मै, पार करना चाहता हूँ , रेट के उस ढेर को - जो अचानक आ गया था , समय की आँधियों के संग -"दरमियाँ हमारे " पर फिसल जाता हूँ                - हर बढ़ाते कदम पर !              दूर तक तलहटी में !!                      डूबता आशा का प्रकाश ,                झुझता मै बेहिसाब ,                     जाग जाता हूँ स्वप्न से                         ---जब याद करता हूँ तुम्हे !!                                                                                          

" लोहड़ी — सांस्कृतिक जीवंतता का पर्व "

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          " लोहड़ी — सांस्कृतिक जीवंतता का पर्व " पंजाब एवं जम्मू–कश्मीर में 'लोहड़ी' नाम से मकर संक्रान्ति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचलित लोककथा है कि मकर संक्रान्ति के दिन कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल में भेजा था, जिसे कृष्ण ने खेल–खेल में ही मार डाला था। उसी घटना की स्मृति में लोहिता का पावन पर्व मनाया जाता है। सिन्धी समाज में भी मकर संक्रान्ति से एक दिन पूर्व 'लाल लाही' के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। जैसे होली जलाते हैं, उसी तरह लोहड़ी की संध्या पर होली की तरह लकड़ियाँ एकत्रित करके जलायी जाती हैं और तिलों से अग्नि का पूजन किया जाता है। इस त्योहार पर बच्चों के द्वारा घर–घर जाकर लकड़ियाँ एकत्र करने का ढंग बड़ा ही रोचक है। बच्चों की टोलियाँ लोहड़ी गाती हैं, और घर–घर से लकड़ियाँ माँगी जाती हैं। वे एक गीत गाते हैं, जो कि बहुत प्रसिद्ध है — सुंदर मुंदरिये ! ..................हो तेरा कौन बेचारा, .................हो दुल्ला भट्टी वाला, ...............हो दुल्ले घी व्याही, ..................हो सेर शक्कर आई,

करवा चौथ

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                                               करवा चौथ :-              हिन्दू धर्म में कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन विवाहित महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत किया जाता है। यह व्रत पति की दीर्घायु , उनकी मंगलकामना और अखंड सौभाग्य की कामना से करती हैं। इस दिन करवा यानि मिट्टी के जल-पात्र की पूजा कर चंद्रमा को अघ्र्य देने का महत्व है। इसीलिए यह व्रत करवा चौथ नाम से  मशहूर है | प्रति वर्ष कृष्ण और शुक्ल पक्षों में कुल मिला कर २४ गणेश चौथ होती है ! इनमे से कार्तिक वदी चौथ करवा चौथ और माघ वदी चौथ सकट चौथ कहलाती है ! नाम में क्या? हिंदू धर्मं के सरे व्रत और त्यौहार किसी न किसी ज्योतिषीय कारणों के परणीत होते है तथा ज्योतिष ही  इनका आधार है ! राशि चक्र के चार खाश बिन्दुओ या मोडो पर जब हमारी प्रथ्वी आती है तो उन कल खंडों में खाश पर्व मनाये जाते है ! उत्तरायण यानि मकर संक्रांति के पास सकट चौथ, मीनांत या वैसाखी के पास दमनक या गण-गौर , कर्क –सि ह के पास हरियाली तीज और गणेश जयंती चौथ तथा तुला संक्रांति पर करक या करवा चौथ होती है | इन सब में गण

NAVARATRI KYUN ??

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   भारत वर्ष त्योहारों और रस रंग का देश है ! मगर, यह सप्ष्ठ होना अयाश्यक है की ऐसा क्यूँ है की भारत में इतने तीज त्यौहार मनाये जाते है ! नवरात्रि तो विशेषतया, इन त्योहारों के मौसम का आरंभ   है ! इसका बहुत साधारण सा उत्तर है की हमारे ऋषि मुनियों ने समय की अवधारणा को अच्छे ढंग से समझा था , और , यहाँ  तक की समय का आकलन विभिन्न ग्रहों के संधर्भ में भी सही सही किया था ! इसी प्रकार मनुष्य  और  देवताओं के समय काल  का अंतर भी हमारे ऋषि मुनिओं ने ठीक प्रकार से समझा था ! दरअसल , देवताओ और मनुष्य के इसी समय के  अंतर  से सारी श्रष्टि चलायमान है !                                                          प्रथ्वी  पर होने वाला एक वर्ष देवताओं का एक अहोरात्रि यानि दिन + रात होता   है, ऋषि मुनिओं ने समय के मिलन काल  का विशेष महत्व बताया है ! इसी लिए संध्या वंदन का  प्रावधान किया गया  है, वास्तव में संध्या संधि धातु से बना है ! जिसका अर्थ समय के जोड़ से है ! अर्थात संध्या वह समय है जब दो काल आपस में मिल रहे हो ! इस प्रकार हमारे एक दिन रात में चार संध्याएँ होती है ! प्रातः, माध्यान , शायं, और रात्रि जिन

बसंत पंचमी

वसन्त पंचमी वसंत पंचमी एक भारतीय त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं। प्राचीन भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था।जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। बसन्त पंचमी कथा सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों आ॓र मौन छाया रहता है।

संतान

The birth of child and astrology. 1. If the Moon occupied an Anupachaya sign in the wife’s horoscope and is aspected by any one planet, she will bring forth a child. If the Moon occupies an upachayas sign and is aspected by strong benefic planets, she will have children, provided remedial measures are performed. In the husband’s horoscope, the Moon in an upachayas sign associated with good planets indicated children. If the Moon is in an anupachaya sign with an aspect of a planet, a child will be born only after the due performance of the remedies. If, however, in the wife’s chart the Moon is in anupachaya and in the husband’s chart the Moon is devoid of benefic aspects then there will be no issue. 2. There will be no issue if there is no strength of Kshetra (female) and beeja (male). Hence an examination of these is necessary. 3. The strength to impregnate is contributed bythe Sun, while Venus governs Semen. If these two occupy odd sigfns and odd navamsas and are strong, the male has